दी नगर न्यूज़ श्रीडूंगरगढ़:-ठुकरियासर बीकानेर जिला मुख्यालय से 95 व श्रीडूंगरगढ़ से 25 किलोमीटर दूर तहसील के आडसर गांव स्थित कालिका माता का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है। श्रीडूंगरगढ़ तहसील का भव्य कालिका माता का यह मंन्दिर प्राचीन धाम में शुमार है और जन-जन के लिए देवी दर्शन का केंद्र स्थल बना है। यहां बसर करने वाले सभी धर्मों के वाङ्क्षशदों का माता के प्रति अटूट श्रद्धा है और वे हर शुभ कार्य एवं दिन की शुरुआत ईष्टदेवी मां कालिका की प्रार्थना के साथ करते हैं। वहीं गांव से बाहर रहने वाले प्रवासी भी विभिन्न माध्यमों से अपनी आराध्य माता के दर्शनों के बाद ही अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं।
बीकानेर-दिल्ली मार्ग पर पहाड़ीनुमा ऊंचे टीले पर बने इस मंदिर की रंग बिरंगी रोशनी से सराबोर भव्यता की झलक दूर-दूर तक झलकती है। गांव की स्थापना के साथ ही छह सौ साल से अधिक सम्वत 1467 को आसजी धेड़ू ने करीब दो सौ फीट की ऊंचाई पर प्राचीन पत्थर की देवळी को घासफूस के झोंपड़े में माता कालिका मन्दिर के रूप में स्थापित की थी। देवळी की स्थापना के बाद से यहां पूजा अर्चना होने लगी और आज भी वंश परम्परानुसार धेड़ू परिवार यहां पूजा अर्चना कर रहे हैं। माता के चमत्कार व समय के बदलाव के साथ ही यहां कालिका माता का भव्य मंदिर बन गया। यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में धर्मशाला, प्याऊ व हाल बने हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए मुख्य ङ्क्षसह द्वार से एक सौ से अधिक सीढिय़ों का निर्माण करवाया गया है। मंदिर में प्रवेश से पूर्व दोनों तरफ काला-गोरा भैरव के मंदिर बने हैं और प्राचीन देवळी के आगे सफेद संगमरमर से निर्मित मूर्ति स्थापित है। वहीं मन्दिर के ठीक सामने प्राचीन पीपल का पेड़ विद्यमान है। मंदिर की व्यवस्थाओं के लिए ग्रामीणों द्वारा श्रीभगवती मंदिर विकास सेवा समिति का गठन किया हुआ है, जिसके पदाधिकारी हर व्यवस्थाओं को संभालते है।
नवरात्र में होते हैं विशेष आयोजन
यहां कालिका देवी मंदिर में नवरात्र के दौरान विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। यहां सुबह-शाम महाआरती, अभिषेक के अलावा देवी भागवत, रामकथा, भागवत आदि कथाओं का वाचन भी होता है। वहीं नौ दिन अखण्ड ज्योत व दुर्गा सप्तशती के पाठ किए जाते हैं।साथ ही पारम्परिक रीति से भगवती जागरण आयोजित होते हैं। नवरात्र घट स्थापना व समाप्ति पर ढ़ोल, थाली, डैरूं आदि पारम्परिक वाद्य यंत्रों पर भोपा (भक्त) द्वारा अखाड़ा किया जाता है, जिसे देखने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर में ज्वारा बीजने व धर्मप्रेमियों को वितरण करने की पुरानी परम्परा का निर्वहन बुजुर्गों द्वारा आज भी किया जा रहा है। ग्रामीण अपनी अधियाष्ट्री देवी से रक्षा की कामना को लेकर गांव के चारों ओर अखंड ज्योत व ढ़ोल डैरूं के वादन के साथ दूध-जल की कार निकालते हैं। यहां नौ दिनों के दौरान मेला का माहौल रहता है।